मुझसे ग़ज़ल की वो हवा नहीं चलनी;
अश्क स्याही से ग़ज़ल नहीं बननी;
किसी पत्थर जैसे राहों में पड़ा हूँ;
राह मार ठोकर भी आसां नही बननी;
चाहे सितारों को ज़मीं पे उतारो;
तेरे नूर के आगे उनकी नहीं चलनी;
है सजी दुल्हन सी मौत खड़ी आगे;
अब माल-ओ-ज़र से भी काया नही बचनी;
'मजबूर' बस सुखी कुल ज़माने में वो;
दिल मोह में जिसने किया नहीं छलनी;
गौरव मजबूर
अश्क: आँसू
माल-ओ-ज़र: धन दौलत
काया: शरीर